केंद्र सरकार कर्मचारियों के भत्तों में बढ़ोतरी को दो साल तक के लिए रोक सकती है।
सातवें वेतन आयोग। कर्मचारियों को बड़ा झटका, दो साल तक नहीं मिलेगा भत्ता?
लखनऊ। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप बढ़े हुए वेतन को पाने का इंतजार कर रहे केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ा झटका लग सकता है। कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारियों के अनुसार उन्हें ऐसी सूचना मिली है कि वित्तीय बोझ का बहाना बनाकर केंद्र सरकार कर्मचारियों के भत्तों में बढ़ोतरी को दो साल तक के लिए रोक सकती है। केंद्र के इस फैसले से सरकारी खजाने में करीब 60,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। गौर तलब है कि सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इन भत्तों को बढ़ाने की सिफारिश की है। समिति की रिपोर्ट को मंजूरी के लिए जल्द ही मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जा सकता है।
लखनऊ में केंद्रीय कर्मचारी यूनियनों के पदाधिकारियों ने बताया कि 47 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों के लिए संशोधित वेतनमान और पेंशन देने की प्रक्रिया में केंद्र सरकार के कुछ अधिकारी अडग़ा डाल रहे हैं। वे वित्तीय बोझ का बहाना बनाकर नए भत्तों में बढ़ोतरी को दो साल यानी 2018-19 तक के लिए टालने का प्रस्ताव केंद्र को देने वाले हैं। यदि प्रस्ताव को सरकार मंजूर कर लेती है तो वेतन और पेंशन देने की प्रक्रिया जुलाई माह से शुरू हो सकती है लेकिन भत्तों में बढ़ोतरी को दो साल के लिए रोका जा सकता है। गौरतलब है कि पिछले वेतन आयोग में भी यही किया गया था।
1.02 लाख करोड़ का पड़ेगा भार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने पर सरकारी खजाने पर मौजूदा वित्त वर्ष में 1.02 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। इसमें से वेतन बढ़ोतरी पर 39,100 करोड़ रुपये, संशोधित भत्तों पर 29,300 करोड़ रुपये और पेंशन पर 33,700 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। अगर दो साल के लिए भत्तों को नहीं बढ़ाया जाता है कि इससे 58,600 करोड़ रुपये की बचत होगी।कम से कम १८ हजार मिलेगी सैलरीवेतन आयोग ने न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रतिमाह करने की सिफारिश की है लेकिन कर्मचारी संगठन इसे 19,000 से 21,000 रुपये करने की मांग कर रहे हैं। करीब 70 प्रतिशत केंद्रीय कर्मचारी गैर कार्यकारी वर्ग में आते हैं। वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इन कर्मचारियों का अधिकतम शुरुआती वेतन 42,000 रुपये प्रतिमाह है। इसका मतलब यह हुआ कि इसमें मामूली बढ़ोतरी से सरकारी खजाने पर प्रतिमाह 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। Patrika
ye unions ka hoax bhi ho sakta hai .. kyonki unions me jo log hain wo keval apne personal faayde / hit ka (e.g. transfer na ho) sochkar hi unions me hain, unions ka jo asali maksad hai wo dur-dur tak kahin follow nahin ho raha hai. to chanda maangne ki nayi takneek hai ye
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